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देहरादून के विभूति सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में ले सकते हैं निशुल्क परामर्श, किडनी के कारीगर हैं डॉ अमर कुमार, जानिये कैसे रखें अपनी किडनी का ख्याल…

By on June 29, 2022 0 237 Views

देहरादून:

उम्र संग बदलता किडनी का आकार

किडनी का काम शरीर में मौजूद विषैले तत्त्वों को यूरिन के रास्ते बाहर निकालना, हार्मोन बनाना आदि हैं। एक व्यस्क व्यक्ति की एक किडनी का आकार 9-11 सेमी. होता है। उम्र के साथ इसका आकार बढ़ता है लेकिन 50 वर्ष के बाद ये सिकुडऩे लगती है। इन्हें स्वस्थ रखने के लिए नमक कम लें, रोजाना 6-7 गिलास साफ पानी पीएं व हाइजीनिक फूड खाएं। डॉक्टरी सलाह से ही पेनकिलर लें। जंकफूड खाने से बचें।नींद से किडनी का अप्रत्यक्ष जुड़ाव है। पर्याप्त नींद से डायबिटीज व बीपी रहने से ये भी स्वस्थ रहती हैं।

पथरी की स्थिति

जेनेटिक, दवाओं के दुष्प्रभाव, बार-बार यूरिन में इंफेक्शन, खनिज तत्त्वों की अधिकता आदि से स्टोन बनते हैं। मेटाबॉलिक एनालिसिस टैस्ट से वजह पता लगाते हैं। पेट के निचले भाग में तेजदर्द व यूरिन में ब्लड आना लक्षण हो सकते हैं। किडनी में कैल्शियम या यूरिक एसिड धीरे-धीरे जमा होकर पथरी का आकार ले लेते हैं। छोटे स्टोन दवाओं से व बड़े सर्जरी कर निकालते हैं।

 

कब हों अलर्ट

डायबिटीज, हाई बीपी, पथरी, लिक्विड को फिल्टर करने वाले ग्लोमेरुलस में सूजन (ग्लोमेरुलो नेफ्राइटिस) से किडनी फेल हो सकती है। यूरिन दिन में कम और रात में अधिक आए, यूरिन पर कंट्रोल न हो, पैरों मेंं सूजन, खाने में अरुचि या बार-बार उल्टी आए तो अलर्ट हो जाएं व डॉक्टर को दिखाएं। दोनों किडनी फेल होने पर ट्रांसप्लांटेशन किया जाता है।

ट्रांसप्लांटेशन

दो तरह से किडनी डोनेट की जाती है। एक जीवित व्यक्ति व दूसरा कैडेवर डोनर (मृत्यु के बाद) से। प्रत्यारोपण न होने पर मरीज को डायलिसिस पर रखते हैं। यह इलाज नहीं बल्कि एक विकल्प है। इससे दूषित रक्त को फिल्टर कर शरीर में मौजूद विषैले पदार्थों को बाहर निकाला जाता है। किडनी फेल्योर में ट्रांसप्लांट ही एकमात्र स्थायी इलाज है।

प्रत्यारोपण के बाद संक्रमण से बचें

परिवारिक सदस्य किडनी डोनेट कर सकता है। उम्र १८-६५ वर्ष के बीच होनी चाहिए। डायबिटीज व हाई बीपी की समस्या व शरीर संक्रमणमुक्त होना चाहिए। ट्रांसप्लांटेशन से पहले मरीज व डोनर का ब्लड टैस्ट कराकर गु्रप मैच कराया जाता है। प्रत्यारोपण में खराब गुर्दों को नहीं निकालते हैं क्योंकि उससे ब्लड सप्लाई जारी रहती है। नई तकनीक एबीओ इन्कंपेटिबल किडनी ट्रांसप्लांटेशन में मरीज व डोनर के ब्लड गु्रप अलग होने पर भी प्रत्यारोपण संभव है। नई किडनी को संक्रमण से बचाना जरूरी है वरना दोबारा ऐसी स्थिति बन सकती है।

मधुमेह रोगी

ऐसे लोगों में यूरिन के जरिए कम या अधिक प्रोटीन निकलने या रक्तसंचार असामान्य होने से किडनी की कार्यप्रणाली प्रभावित हो सकती है। ऐसे में खाली पेट ब्लड शुगर लेवल 100 और खाने के दो घंटे बाद 150-160 एमजी/डीएल से अधिक नहीं होना चाहिए। ब्लड प्रेशर 90-130 होना चाहिए। रोजाना वॉक करें।

अधिक पानी पीना, उपवास का असर

कई लोगों का मानना है कि अधिक पानी पीने से भी किडनी प्रभावित होती है लेकिन ऐसा नहीं है। यह अधिक पानी को भी फिल्टर करने में सक्षम है। ६-८ गिलास से अधिक पानी पीने से पथरी का खतरा घटता है। या पथरी है तो इसका आकार बढ़ता नहीं क्योंकि पानी से स्टोन में कैल्शियम और यूरिक एसिड चिपक नहीं पाते। कई दिनों तक निर्जला व्रत से बचें। बॉडी में पानी कम होने पर स्टोन की स्थिति बन सकती है।

बिना दर्द के यूरिन में ब्लड आना

यूरिन में ब्लड आना व दर्द न होना किडनी में कैंसर के लक्षण हो सकते हैं। इलाज के तौर पर सर्जरी के तहत आधी या पूरी किडनी निकाल देते हैं। इससे जीवनशैली प्रभावित नहीं होती है