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आज के दौर में मई दिवस की प्रासंगिकता पर हुई गोष्ठी……

By on April 30, 2022 0 217 Views

रामनगर।ज्योतिबाफुले सांयकालीन स्कूल पुछड़ी की पहल पर आज मजदूर दिवस की पूर्व संध्या पर स्कूल में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया।”आज के समय में मई दिवस की प्रासंगिकता”बिषय पर हुई उपरोक्त गोष्ठी की शुरुआत फैज लिखित गीत हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगे के साथ साथ अन्य जनगीतों से हुई।सांयकालीन स्कूल की शिक्षिका अंजलि रावत ने मई दिवस के इतिहास पर बातचीत रखते हुये कहा कि विश्व में सबसे पहले 1 मई 1886 को अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत हुई थी। 1 मई 1886 को अमेरिका की मजदूर यूनियनों ने काम के 8 घंटे से अधिक ना रखने को लेकर देशव्यापी हड़ताल की थी। हजारों की संख्या में मजदूर सड़कों पर उतर आए थे। ये मजदूर 10 से 15 घंटे काम कराए जाने को लेकर विरोध कर रहे थे।इनकी मांग थी कि काम के घंटे को 8 घंटे ही फिक्स कर देना चाहिए। स हड़ताल के दौरान शिकागो की हे मार्केट में एक बड़ा बम धमाका हुआ था। हालांकि ये धमाका किसने किया इसका तो पता नहीं चल पाया लेकिन इसके बाद पुलिस ने मजदूरों पर फायरिंग शुरू कर दी थी। जिसमें कई मजदूरों की मौत हो गई थी।बाद में 8 मजदूर नेताओं को फांसी दे दी गयी।
इसके बाद 1889 में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की दूसरी बैठक में यह घोषणा किया गया था कि1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाएगा और इस दिन सभी मजदूरों को काम से अवकाश भी दिया जाएगा। अमेरिका सहित कई देशों ने भी ये घोषणा की कि 8 घंटे काम करने का समय निश्चित कर दिया गया है। इसके बाद से हर साल 1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है। मौजूदा समय भारत समेच अन्य कई देशों में मजदूरों के 8 घंटे काम करने से संबंधित कानून लागू है।शिक्षक सुमित कुमार ने भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत पर बातचीत रखते हुए कहा कि भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1923 को चेन्नई में हुई।मजदूर दिवस का प्रतीक चिन्ह लाल झंडा माना जाता है।रचनात्मक शिक्षक मण्डल के गिरीश मैंदोला ने सरकार द्वारा श्रम कानूनों में सरकार द्वारा किये जा रहे बदलावों को मजदूर विरोधी बताते हुई कहा कि संगठित क्षेत्र के कर्मचारी शिक्षकोन से जहां सरकार ने नई पेंशन स्कीम के बहाने बुढ़ापे की लाठी को छीन लिया है वहीं मौजूदा सरकारों ने श्रम कानूनों में परिवर्तन शुरू कर दिया है। जहा मालिकों को मनमाने ढंग से वेतन तय करने, ओवरटाइम काम लेने, छुट्टी देने, मुआवजा निर्धारित करने आदि की खुली छूट होगी। असंगठित क्षेत्र में बेहद ही कम वेतन पर मजदूर-वर्ग के बहुसंख्यक पुरुष और महिलाएं कमरतोड़ मेहनत करती हैं। इस क्षेत्र में राज्य की सार्वजनिक शक्ति की गैर-मौजूदगी मालिकों की निरंकुश सत्ता का कारण बनी हुई है।श्रम कानूनों में बदलाव हमें सौ साल पीछे ले जाने वाला कदम है।
शिक्षक नेता नन्दराम आर्य ने सभी से अपने अधिकारों के लिए एकजुट रहने का आह्वान किया।मनोनीत ग्राम प्रधान मो ताहिर की अध्यक्षता में हुई उपरोक्त गोष्ठी में कर्मचारी शिक्षक संगठन के मंडलीय अध्य्क्ष नवेन्दु मठपाल,सुभाष गोला,बालकृष्ण चंद,प्रकाश कुमार,शारदा देवी,लक्ष्मण सिंह,आशा देवी,सन्तोष,चन्द्रवती,
सकीना,रुखसार,रहमान शाह,कला देवी,तुलसी देवी,किरण देवी,आसमा,गंगा,मौजूद रहे।