
उत्तराखंड की राजनीति मे परिवारवाद का असर, कहीं बाप की जगह बेटी, तो कहीं पति की जगह पत्नी और कहीं बाप – बेटे दोनों को मिला टिकट का समर…
देहरादून: उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के लिए मैदान सज गया है और प्रत्याशी ताल ठोकते हुए महासमर में आ डटे हैं। नामांकन प्रक्रिया का पहला चरण पूर्ण हो चुका है और नामवापसी के बाद चुनावी परिदृश्य पूरी तरह साफ हो जाएगा। इस सबके बीच एक दिलचस्प तथ्य उभर कर सामने आया है कि परिवारवाद इस चुनाव में भी अपनी अहम उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहा है। परिवारवाद, मतलब राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की परंपरा, जिसके संवाहक बने नेता राज्य की लगभग डेढ़ दर्जन सीटों पर भाग्य आजमा रहे हैं। इनमें से अधिकांश तो राजनीति में स्थापित हो चुके हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जो शुरुआत करने जा रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस, दोनों दलों में इस श्रेणी के अंतर्गत आने वाले नेता शामिल हैं।
बहुगुणा परिवार की तीसरी पीढ़ी के सौरभ
शुरुआत करते हैं सबसे पुराने राजनीतिक परिवारों में से एक बहुगुणा परिवार से। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और केंद्र में कई अहम मंत्रालय संभाल चुके स्व हेमवती नंदन बहुगुणा की परंपरा को आगे बढ़ाया उनके पुत्र विजय बहुगुणा ने। वह कांग्रेस से सांसद और फिर वर्ष 2012 से 2014 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे। मार्च 2016 में विजय बहुगुणा भाजपा में शामिल हो गए और तब उनके पुत्र सौरभ बहुगुणा ने उनकी विरासत संभाली। सौरभ पिछला विधानसभा चुनाव सितारगंज से जीते और इस बार भी इसी सीट से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।
ऋतु खंडूड़ी भूषण कोटद्वार से मैदान में
केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी (सेनि) वर्ष 2007 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2009 में डा रमेश पोखरियाल निशंक को उनकी जगह मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन विधानसभा चुनाव से लगभग छह महीने पहले वर्ष 2011 में खंडूड़ी को दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी गई। अब खंडूड़ी की राजनीतिक विरासत को उनकी पुत्री ऋतु भूषण खंडूड़ी संभाल रही हैं। ऋतु पिछला चुनाव यमकेश्वर सीट से जीतीं और इस चुनाव में उन्हें भाजपा ने कोटद्वार से प्रत्याशी बनाया है। वह भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। खंडूड़ी के पुत्र मनीष खंडूड़ी भी पौड़ी सीट से पिछला लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस के टिकट पर।
आर्य पिता-पुत्र की जोड़ी अब कांग्रेस में
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष व विधानसभा अध्यक्ष रहे यशपाल आर्य वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस से भाजपा में आए। भाजपा ने उन्हें और उनके पुत्र संजीव, दोनों को टिकट दिया और दोनों ने जीत दर्ज की। यशपाल आर्य वर्ष 2017 में भाजपा के सत्ता में आने पर कैबिनेट मंत्री बने। अक्टूबर 2021 में आर्य अपने पुत्र सहित कांग्रेस में लौट गए। कांग्रेस ने इस चुनाव में यशपाल आर्य को बाजपुर व संजीव आर्य को नैनीताल सीट से प्रत्याशी बनाया है। अविभाजित उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और फिर भाजपा से विधायक बने स्व भारत सिंह रावत के पुत्र दिलीप रावत भी परिवार की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। दिलीप दो बार लैंसडौन सीट से भाजपा विधायक रहे और लगातार तीसरी बार इसी सीट से भाजपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे हैं।
ममता राकेश व चंद्रा पंत पर किया भरोसा
बसपा से विधायक रहे और तीसरी विधानसभा में कांग्रेस को समर्थन देकर मंत्री बने स्व सुरेंद्र राकेश के निधन के बाद उनकी पत्नी ममता राकेश कांग्रेस के टिकट पर उप चुनाव जीतकर विधायक बनीं। पिछले चुनाव में भी कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया और उन्होंने दोबारा भगवानपुर सीट पर जीत हासिल की। इस बार भी ममता इसी सीट से कांग्रेस प्रत्याशी हैं। पिथौरागढ़ से विधायक और वर्ष 2017 में भाजपा के सत्ता में आने पर कैबिनेट मंत्री बनाए गए प्रकाश पंत के असामयिक निधन के बाद भाजपा ने उनकी पत्नी चंद्रा पंत को उप चुनाव में प्रत्याशी बनाया। चंद्रा पंत ने चुनाव जीता और अब भाजपा ने उन्हें फिर पिथौरागढ़ से टिकट दिया है। देहरादून कैंट सीट से विधायक रहे हरबंस कपूर के निधन के बाद इस बार भाजपा ने उनकी पत्नी सविता कपूर को इस सीट से प्रत्याशी बनाया है।
भाजपा ने महेश, कांग्रेस ने सुमित पर खेला दांव
अल्मोड़ा जिले की सल्ट सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक सुरेंद्र सिंह जीना पिछला चुनाव जीते थे, लेकिन उनका असामयिक निधन हो गया। इसके बाद भाजपा ने उनके भाई महेश जीना को उप चुनाव में प्रत्याशी बनाया। महेश जीना चुनाव जीते और इस बार भी भाजपा ने उन्हीं को टिकट दिया है। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और चौथी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का दायित्व संभाल रहीं डा इंदिरा हृदयेश का कुछ समय पहले निधन हुआ तो कांग्रेस ने इस चुनाव में उनके पुत्र सुमित को परिवार की पारंपरिक हल्द्वानी सीट सौंपकर उन्हें प्रत्याशी बनाया है।
हरीश रावत के साथ पुत्री अनुपमा को भी टिकट
केंद्र में मंत्री और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे हरीश रावत, यशपाल आर्य के अलावा कांग्रेस में ऐसे दूसरे नेता हैं, जिन्हें कांग्रेस ने इस चुनाव में दो टिकट दिए हैं। हरीश रावत स्वयं लालकुआं से मैदान में हैं तो उनकी पुत्री अनुपमा रावत हरिद्वार जिले की हरिद्वार ग्रामीण सीट से कांग्रेस प्रत्याशी हैं। वैसे रावत की पत्नी रेणुका रावत भी चुनाव लड़ चुकी हैं। पहले कांग्रेस और अब भाजपा के बड़े नेताओं में शामिल सतपाल महाराज पिछला चुनाव चौबट्टाखाल सीट से जीते और मंत्री बने। इस बार भी वह इसी सीट से किस्मत आजमा रहे हैं। महाराज की पत्नी अमृता रावत कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री रही हैं।
यहां पुत्र, पत्नी और पुत्रवधू बने परंपरा के संवाहक
परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए तीन नए चेहरे भी इस चुनाव में ताल ठोक रहे हैं। इनमें से दो भाजपा व एक कांग्रेस से हैं। काशीपुर सीट से भाजपा विधायक हरभजन सिंह चीमा की जगह पार्टी ने इस बार उनके पुत्र त्रिलोक सिंह चीमा को प्रत्याशी बनाया है। इसी तरह हरिद्वार जिले की खानपुर सीट से विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन के स्थान पर उनकी पत्नी रानी देवयानी सिंह इस बार भाजपा प्रत्याशी हैं। इस चुनाव में तीन टिकटों की मांग कर रहे डा हरक सिंह रावत को भाजपा ने न केवल मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया, बल्कि उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित भी कर दिया। कांग्रेस ने हरक की घर वापसी तो करा दी, लेकिन टिकट एक ही दिया। हरक के स्थान पर उनकी पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं रावत लैंसडौन सीट से कांग्रेस प्रत्याशी बनाई गई हैं।
प्रीतम, नवप्रभात, निजामुद्दीन भी परंपरा का हिस्सा
कांग्रेस के तीन अन्य बड़े नेता भी अपने परिवार की राजनीतिक परंपरा का हिस्सा हैं। इनमें से प्रीतम सिंह चौथी विधानसभा में डा इंदिरा हृदयेश के निधन के बाद नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। प्रीतम के पिता स्व गुलाब सिंह का नाम अविभाजित उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेताओं में शामिल था। वह उत्तर प्रदेश में मंत्री भी रहे। प्रीतम इस चुनाव में चकराता सीट से कांग्रेस प्रत्याशी हैं। पूर्व मंत्री नवप्रभात विकास नगर सीट से कांग्रेस टिकट पर मैदान में हैं। उनके पिता स्व ब्रह्मदत्त केंद्र सरकार में मंत्री रहे। इसी तरह मंगलौर से कांग्रेस विधायक काजी निजामुद्दीन के पिता स्व काजी मोहियुद्दीन भी उत्तर प्रदेश में विधायक रहे।