
रामनगर 2022 के विधनसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी को निर्दलीय दे सकते है मात
रामनगर में चुनावी मुकाबला अभी तक चतुष्कोणीय लग रहा है। जानकारों की यदि माने तो यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होता रहा है। लेकिन इस बार निर्दलीय इस मुकाबले को काफी रोचक बना रहे हैं। यहां बीजेपी और कांग्रेस के साथ ही निर्दलीय संजय नेगी व श्वेता मासीवाल इस मुकाबले में अन्य के साथ बराबर बने हुए हैं।
बीजेपी ने यहां के सिटिंग विधायक दीवान सिंह बिष्ट पर ही दांव खेला है। दीवान सिंह बिष्ट की सरल और सौम्य छवि जनता में उनका प्लस पॉइंट माना जा रहा है। विधायक का दावा है कि उन्होंने बीते 5 सालों में विभिन्न क्षेत्रों में बहुत काम किया है। जिसका फायदा उन्हें मिलना तय है। इसके विपरीत दीवान सिंह बिष्ट को एन्टी इनकंबेंसी का सामना करना पड़ सकता है। इसके साथ ही बीजेपी शासन काल मे बढ़ी महंगाई उनके लिए परेशानी का कारण हो सकता है।
दूसरी ओर इस सीट पर कांग्रेस के 2 रावतों की लड़ाई में महेंद्रपाल सिंह बाजी मार ले गए। महेंद्रपाल सिंह पूर्व में नैनीताल से सांसद रह चुके हैं। वह एक वकील भी हैं। यहां से तैयारी कर रहे रणजीत रावत का पूरा समर्थन उन्हें प्राप्त है। जिसके चलते महेन्द्रपाल सिंह भी अपनी जीत तय मान रहे हैं। वही महेन्द्रपाल सिंह रामनगर के लिए नया नाम हैं। जो उनके लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
अब निर्दलीय की बात कर लेते हैं। इनमे संजय नेगी राजनीति में पहले से सक्रिय हैं। कुछ दिन पहले तक कांग्रेस से जुड़े रहे संजय नेगी हरीश रावत के समर्थक रहे हैं। संजय नेगी पूर्व सीएम हरीश रावत के यहां से चुनाव नही लड़ने से नाराज हैं। इसके चलते कांग्रेस से बगावत कर वह निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। संजय नेगी युवा हैं। पहले ब्लॉक प्रमुख रह चुके हैं। साथ ही युवाओं में अच्छी पैंठ रखते हैं। ब्लॉक प्रमुख रहते उनकी पहुंच ग्रामीण क्षेत्रो में भी रही है। इसके विपरीत संजय के साथ संगठन की ताकत नही है। जो चुनावी जंग में उनके लिए मुसीबत बन सकती है।
समाजसेवा से राजनीति में कदम रखने वाली श्वेता मासीवाल राजनीति के लिए नया चेहरा हैं। लेकिन समाजसेवा से जुड़े होने के चलते वह भी समाज मे जाना पहचाना नाम है। श्वेता मासीवाल ग्रामीण क्षेत्रो में भी अच्छा दखल रखती हैं। युवा होने के साथ ही वह वेल एजुकेटेड हैं। इस विधानसभा में वह अकेली महिला प्रत्याशी हैं। जिसका लाभ भी उन्हें मिल सकता है। लेकिन राजनीति में एकदम नया चेहरा होने के चलते उनके लिए परेशानी हो सकती है। वहीं चुनाव के आगे बढ़ते-बढ़ते संगठन की कमी भी उन्हें महसूस हो सकती है।
यहां यह बताना भी जरूरी होगा कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों का अपना वोट बैंक है। और इनके चुनाव चिन्ह से अधिकांश जनता वाकिफ है। जिससे इन दोनों दलों को टक्कर देने के लिए अन्य प्रत्याशियों को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।