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फिर शुरू होगी विश्वप्रसिद्ध कुमाऊंनी रामलीला, कोरोना ने लगा दिया था 161 साल पुरानी परंपरा पर ब्रेक
अल्मोड़ा: कोरोनाकाल की सुस्ती तोड़ते हुए कुमाऊं की रामलीला से पर्दा उठने जा रहा है। हल्द्वानी समेत कुमाऊं के प्रमुख स्थानों पर रामलीला मंचन के लिए रिहर्सल जारी है। पहली नवरात्र से रामलीला के मधुर संवाद सुनाई देने लगेंगे। गीत-नाट्य शैली आधारित कुमाऊं की रामलीला में शास्त्रीयता भी मिश्रित है। 161 वर्ष का इतिहास लिए कुमाऊं की रामलीला ने कोरोनाकाल में वो दौर देखा जब दशकों की परंपरा छूट गई। कुछ कमेटियों ने रामायण, हनुमान चालीसा पाठ कर आस्था व परंपरा जिंदा रखी। कुछ ने दस दिन की रामलीला तीन दिन में मंचित कर परंपरा को संरक्षित किया। कोरोना के मामले कम होने के बाद कलाकार एक बार फिर प्रभु लीला को मंच पर उतारने को तैयार हैं।
अल्मोड़ा में पड़ा रामलीला का बीज
लेखक चंद्रशेखर तिवारी बताते हैं कि 1860 में अल्मोड़ा के तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर देवीदत्त जोशी ने बद्रेश्वर मंदिर परिसर मे पहली बार रामलीला कराई थी। जोशी इससे पहले 1830 में मुरादाबाद में रामलीला करा चुके थे। नैनीताल के दुर्गापुर-वीरभट्टी में मोतीलाल साह के प्रयासों से 1880 में रामलीला शुरू हुई। बागेश्वर में 1890 में शिवलाल साह, पिथौरागढ़ में 1902 में देवीदत्त जोशी ने रामलीला की शुरुआत की थी। भीमताल में 1910 के आसपास रामलीला शुरू हुई। धीरे-धीरे यह दूसरी जगहों पर फैलती गई। पं. मदन मोहन मालवीय ने बनारस के गुजराती मोहल्ले में कुमाऊं की रामलीला का मंचन कराते हुए नया अध्याय जोड़ा था।