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धराली मे आई आपदा के पीछे इन झीलों का हाथ ! साइंटिस्ट ने साझा की अहम जानकारियां, 30 सेकंड मे आई तबाही
देहरादून: उत्तरकाशी के धराली में कुदरत ने ऐसा जख्म दिया है जिसे भरने में लंबा समय लग सकता है. 2013 केदारनाथ त्रासदी के बाद अब उत्तरकाशी में मची इस तबाही ने सबका ध्यान खींचा है. इस घटना को कोई बादल फटने से जोड़ रहा है तो कोई झील के टूटने को वजह बता रहा है. लेकिन इस पूरे रीजन का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिक अपनी अलग बात रख रहे हैं.
वैज्ञानिकों ने बताई वजह: हिमालय पर रिसर्च कर रहे देहरादून स्थित दून विश्वविद्यालय के नित्यानंद हिमालयन रिसर्च सेंटर से जुड़े वैज्ञानिक प्रो. डीडी चुनियाल ने धराली की घटना का विश्लेषण करने के बाद अहम जानकारियां साझा की हैं. उन्होंने बताया कि ‘यह आपदा बादल फटने की घटना नहीं है. बल्कि, अचानक अतिवृष्टि होना, बर्फ का ज्यादा पिघलना और छोटे-मोटे ताल के टूटने का परिणाम है.‘
“धराली गांव के ऊपरी क्षेत्रों में समय के साथ छोटी-छोटी ग्लेशियल झीलें बनी हैं, जिनमें ग्लेशियर के पिघलने से पानी जमा हुआ. ये झीलें अचानक फट गईं, जिससे भारी मात्रा में पानी और मलबा नीचे की ओर बहा, जिसने धराली गांव में तबाही मचाई.”
– प्रो. डीडी चुनियाल, नित्यानंद हिमालयन रिसर्च सेंटर, दून विश्वविद्यालय
प्रो. चुनियाल ने इस आपदा को मानवीय हस्तक्षेप से भी जोड़ा. उन्होंने संकेत दिया कि पर्यावरणीय असंतुलन जैसे कि जलवायु परिवर्तन और अंधाधुंध विकास, ग्लेशियरों के पिघलने और ऐसी झीलों के बनने में योगदान दे रहे हैं. उन्होंने बादल फटने और ग्लेशियर फटने में भी अंतर बताया.
“बादल फटना एक तीव्र गति से बारिश आने की घटना है. जबकि, ग्लेशियर फटना ग्लेशियल झीलों के अचानक टूटने से होता है, जो ज्यादा विनाशकारी हो सकता है. केदारनाथ त्रासदी में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला था. वहां पर भी ग्लेशियर झील फटने के कारण आपदा आई थी, ठीक ऐसा ही धराली में भी देखने को मिला है.”
– प्रो. डीडी चुनियाल, नित्यानंद हिमालयन रिसर्च सेंटर, दून विश्वविद्यालय
पाइप लाइन में थे बड़े प्रोजेक्ट: इस पूरे इलाके में कई और प्रोजेक्ट भी आने वाले सालों में शुरू होने वाले थे. इसके लिए बकायदा कुछ पेड़ों को चिन्हित भी कर लिया गया था. केंद्र सरकार की ऑल वेदर रोड परियोजना इसी धराली गांव से होते हुए गुजरने थी. हालांकि, उस पर अभी तक काम शुरू नहीं हुआ, लेकिन उससे पहले कुदरत ने संकेत दिया कि अगर पहाड़ों और नदी नालों में मानवीय हस्तक्षेप अत्यधिक बढ़ेगा तो परिणाम धराली एवं केदारनाथ जैसे होंगे.
पर्वतारोही संजय सैनी ने साझा किए अनुभव: वहीं, साल 1996 से इस पूरे इलाकों को करीब से जानने वाले पर्वतारोही संजय सैनी ने कई बातें साझा की. संजय सैनी साल 1996 में पहली बार पर्वतारोही के तौर पर यात्रा करने वाले उन चुनिंदा लोगों में से एक हैं, जिन्होंने इस पूरे क्षेत्र को बेहद करीब से देखा है.
जिस जगह पर तबाही मची, उस जगह पर थे मात्र 4 घर: उन्होंने बताया कि धराली में जिस जगह पर आपदा ने कहर बरपाया है, उस जगह पर आज से करीब 20 साल पहले मात्र 4 घर हुआ करते थे, लेकिन आज उसके आसपास कई इमारतें खड़ी हो गई हैं. होटल, होमस्टे लेकर तमाम कंक्रीट के इमारतें खड़ी कर ली गई हैं.
धराली के ऊपर हैं 7 ताल: संजय बताते हैं कि इस क्षेत्र में लोग ट्रेकिंग के लिए पहुंचते हैं. धराली के ऊपर एक बेहद खूबसूरत 7 ताल (लेक) हैं, जो अलग-अलग नाम से जाने जाते हैं. इनमें छड़िग्या ताल, मृदुंगा ताल, बमण्या ताल, रिख ताल, शंखघाटा ताल, घंडोलिया ताल, दवारिया ताल शामिल हैं. हमेशा इन लेक में पानी भरा हुआ रहता है.
ग्लेशियर का हिस्सा टूटकर झील में गिरने की आशंका: काफी बड़ी-बड़ी ये लेक ट्रेकिंग करने वालों के लिए एक आकर्षण का केंद्र रहती है. ऐसे में हो सकता है कि ग्लेशियर का एक बड़ा हिस्सा टूटकर लेक में आया हो, जिससे पानी ओवरफ्लो होकर सैलाब के रूप में नीचे तक आया हो.
विदेशों तक जाते हैं धराली के सेब: धराली की एक अहम जानकारी देते हुए संजय बताते हैं कि पूरे उत्तराखंड में धराली ही एक ऐसा गांव था, जहां का सेब आकार में सबसे बड़ा हुआ करता था. साथ ही अपने लाजवाब स्वाद के लिए जाना जाता है. जिस पानी के सैलाब ने सेब के बगीचों को तबाह किया है, उन बगीचों से सेब विदेशों तक जाता था.
कई साल पहले इस क्षेत्र में आपदा आई थी और उसके बाद ही यहां के लोगों को मुखबा में बसाया गया था. बर्फबारी के दौरान यह गांव और भी ज्यादा खूबसूरत हो जाता है. चारों तरफ बर्फ से ढके होने की वजह से पर्यटक काफी संख्या में यहां का रुख करने लगे हैं.
–संजय सैनी, पर्वतारोही
राज कपूर को एक नजर में पसंद आ गया थी लोकेशन: संजय सैनी के मुताबिक, हर्षिल घाटी की खूबसूरती का आप अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि जब राज कपूर के निर्देशन और निर्माण में बनी फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली‘ की शूटिंग यहीं पर हुई थी. उन्हें पहली नजर में ही पूरा इलाका बेहद पसंद आया था.
धराली गांव से थोड़ा सा पहले एक झरने में इस फिल्म के सीन शूट किए गए थे. जबकि, फिल्म का बड़ा हिस्सा हर्षिल इलाके में शूट हुआ. हर्षिल की खूबसूरत वादियां, भागीरथी नदी का किनारा और प्राकृतिक सौंदर्य फिल्म में प्रमुखता से दिखाए गए.
फिल्म में मंदाकिनी के नहाने वाला प्रसिद्ध झरना भी हर्षिल में है, जिसे अब ‘मंदाकिनी झरना‘ कहा जाता है. हर्षिल का डाकघर भी फिल्म में दिखाया गया, जो आज भी पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है. संजय सैनी अपने पुराने दिनों को याद करके जहां बेहद खुश होते हैं, लेकिन मंगलवार को आई आपदा की तस्वीरों को देखकर बेहद परेशान भी हैं.
उत्तरकाशी जिले में बड़े ग्लेशियर झीलों की स्थिति: वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून की मानें तो भागीरथी बेसिन में 131 ग्लेशियर झील मौजदू हैं, जिनका आकार 1,034,759 स्क्वायर मीटर है. जबकि, टौंस बेसिन में 4 ग्लेशियर झील हैं, जिनका आकार 1,880 स्क्वायर मीटर है. वहीं, यमुना बेसिन में 2 ग्लेशियर झील हैं, जिनका आकार 6,388 स्क्वायर मीटर है.
उत्तराखंड में 13 ग्लेशियर झीलों में 5 झील अति संवेदनशील: एनडीएमए की ओर से जारी संवेदनशील ग्लेशियर लेक की सूची के मुताबिक, उत्तराखंड में 13 ग्लेशियर लेक संवेदनशील और 5 अति संवेदनशील हैं. जिसको एनडीएमए ने संवेदनशीलता के आधार पर 3 कैटेगरी में रखा है. अति संवेदनशील 5 ग्लेशियर झील को A कैटेगरी में रखा है, जिसमें से 4 ग्लेशियर लेक पिथौरागढ़ और एक ग्लेशियर लेक चमोली जिले में मौजूद है.
इसके बाद थोड़ा कम संवेदनशील वाले 4 ग्लेशियर झीलों को B कैटेगरी में रखा गया है, जिसमें से 1 चमोली, 1 टिहरी और 2 झीलें पिथौरागढ़ जिले में हैं. इसी तरह से कम संवेदनशील 4 झीलों को C कैटेगरी में रखा है, ये झीलें उत्तरकाशी, चमोली और टिहरी जिले में मौजूद हैं.