- Home
- उत्तराखण्ड
- जिसकी भी बने “सरकार” चुनौतियाँ होंगी हज़ार, रोकना होगा पलायन, देना होगा रोजगार, पढ़िये स्पेशल रिपोर्ट

जिसकी भी बने “सरकार” चुनौतियाँ होंगी हज़ार, रोकना होगा पलायन, देना होगा रोजगार, पढ़िये स्पेशल रिपोर्ट
देहरादून: उत्तराखंड में 5वीं विधानसभा के लिए 14 फरवरी को मतदान सम्पन्न हो चुके हैं और अब 10 मार्च को रिजल्ट आने हैं जिसके बाद नई सरकार का गठन होगा। नई सरकार से उत्तराखंड के लोगों को खासा उम्मीदें हैं। ऐसे में नई सरकारक के गठन के साथ ही नए मुख्यमंत्री के सामने कई चुनौतियां भी खड़ी होने जा रही हैं। राज्य पर कर्ज, पलायन, बेरोजगारी विकास सहित कई मुद्दे ऐसे हैं जिनसे नई सरकार को निपटने मे जद्दोजहद करनी पड़ेगी। उत्तराखंड राज्य की अर्थव्यवस्था कर्ज के ईंधन से ही चल रही है। इस बात की तस्दीक कैग रिपोर्ट करती है। रिपोर्ट के मुताबिक, 31 मार्च 2020 तक उत्तराखंड सरकार 65,982 करोड़ के कर्ज के तले दब चुकी थी। पिछले पांच सालों में कर्ज का यह ग्राफ लगातार बढ़ा है।
वहीं दूसरी चुनौती ये की प्रदेश में 8 लाख 42 हजार बेरोजगार पंजीकृत हैं। सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट भी राज्य में बेरोजगारी और रोजगार के कम मौके होने की तस्दीक कर रही है। प्रदेश में नौ फीसदी नौकरी योग्य ग्रेजुएट युवा बेरोजगार घूम रहे हैं। शहरी इलाकों में 4.3 फीसदी जबकि ग्रामीण इलाकों में 4.0 फीसदी बेरोगारी की दर है। उत्तराखंड में रोजगार एवं श्रम भागीदारी दर देश में सबसे कम है। सीएमआईई के अनुसार दिसंबर तक उत्तराखंड में रोजगार दर 30.43 फीसदी थी। यह राष्ट्रीय औसत 37.42 फीसदी से काफी कम है और देश में सबसे नीचे है। उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां ही उसकी विषमताओं की प्रमुख वजह है. सड़कों की कमी, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी सुविधाओं का अभाव, बेरोजगारी और गरीबी के चलते साल दर साल दशकों से पहाड़ से लोगों का पलायन जारी है. और हर बार चुनाव मे ये वादा किया जाता है की पहाड़ों पर शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, रोजगार सहित हर सुविधा मुहैया कराई जाएगी लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता। बढ़ती मंहगाई भी नई सरकार के सामने बड़ी चुनौती होगी लोग महंगाई की मार से परेशान हैं।
कर्ज का ग्राफ
वर्ष सरकार पर बकाया ऋण सकल राज्य घरेलू उत्पाद
2015-16 39069 9.74
2016-17 44,583 10.14
2017-18 51,831 14.20
2018-19 58,039 10.35
2019-20 65,982 3.16
(नोट: धनराशि करोड़ में व सकल राज्य घरेलू उत्पाद प्रतिशत में)
राज्य के हर चुनाव में मतदाताओं से रोजगार बढ़ाने के वादे किए जाते हैं राज्य को कर्ज मुक्त बनाने की घोषणाएँ की जाती हैं। पलायन रोकने के लिए तरह – तरह के अभियान चलाने के वादे किए जाते हैं । लेकिन चुनाव बीत जाने के बाद यह वादे कोरी घोषणाएं साबित होती हैं। इस बार भी बड़े-बड़े राजनीतिक दल और प्रत्याशी युवाओं को लुभाने के लिए नई-नई योजनाएं लाने का वादा किया। किसी ने नई नौकरियां लाने की बात काही तो किसी ने स्वरोजगार के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराने का वादा किया देखना है कि चुनाव संपन्न होने के बाद युवाओं से किए जा रहे वायदों पर कितना काम होता है।