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केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा में मंजूरी, स्पीकर बोले- चर्चा के बाद लेंगे फैसला, क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव

By on July 26, 2023 0 303 Views

नई दिल्ली. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बुधवार को नियमों के तहत आवश्यक 50 से अधिक सांसदों की गिनती के बाद केंद्र सरकार के खिलाफ कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. उन्होंने कहा कि बहस का समय वह तय करेंगे और सदन को बतायेंगे. दोपहर 12 बजे सदन की बैठक शुरू होने और कागजात मेज पर रखे जाने के बाद अध्यक्ष ने कहा कि उन्हें सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए गोगोई से नोटिस मिला है.

उन्होंने प्रस्ताव को स्वीकार करने का समर्थन करने वाले सदस्यों से खड़े होने के लिए कहा, जिसके बाद कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला सहित I.N.D.I.A गठबंधन के सदस्य गिनती के लिए खड़े हो गए. इसके बाद लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने केंद्रीय मंत्रिपरिषद में विश्वास की कमी व्यक्त करते हुए प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. ओम बिरला ने कहा कि इस पर चर्चा के लिए तारीख और समय सभी पक्षों से विचार-विमर्श के बाद तय किया जाएगा.

मोर्चे के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि भारत के 26 विपक्षी दलों के गठबंधन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मणिपुर हिंसा पर संसद में बोलने के लिए प्रस्ताव लाने का फैसला किया है. हालांकि विपक्षी दलों का अविश्वास प्रस्ताव संख्या परीक्षण में असफल होना तय है, लेकिन विपक्षी दलों का तर्क है कि वे बहस के दौरान मणिपुर मुद्दे पर सरकार को घेरकर धारणा की लड़ाई जीत लेंगे. उनका तर्क है कि प्रधानमंत्री को महत्वपूर्ण मुद्दे पर संसद में बोलना भी एक रणनीति है, जबकि सरकार इस बात पर जोर दे रही है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर की स्थिति पर बहस का जवाब देंगे.

क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव

अविश्वास प्रस्ताव के जरिए सरकार के बहुमत को चुनौती दी जाती है. फ्लोर टेस्ट में अगर ये प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो सरकार अल्पमत में मानी जाती है और उसे इस्तीफा देना होता है. अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा में कोई भी सदस्य पेश कर सकता है, लेकिन इसके लिए कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन जरूरी होता है.

भारतीय संसदीय इतिहास में अविश्वास प्रस्ताव लाने का सिलसिला देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय ही शुरू हो गया था. नेहरू के खिलाफ 1963 में आचार्य कृपलानी अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे. इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 मत पड़े थे जबकि विरोध में 347 मत आए थे. इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पी वी नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह समेत कई प्रधानमंत्रियों को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था.