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उत्तराखंड में फिर गरमाया नए जिलों के गठन का मुद्दा, विधानसभा अध्यक्ष ने कहा…
देहरादून: उत्तराखंड में एक बार फिर से नए जिलों के गठन का मुद्दा गरमाने लगा है. खास तौर से विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी कोटद्वार को नया जिला बनाने की पुरजोर पैरोकारी कर रही हैं. ऐसे में अब सरकार के ऊपर भी दबाव बढ़ गया है. हालांकि अभी भी एक बड़ा सवाल ये है कि क्या उत्तराखंड में नए जिलों का गठन होगा? विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी ने कहा कि उत्तराखंड राज्य में पिछले लंबे समय से नए जिलों के गठन का मुद्दा उठता रहा है. पूर्व में भाजपा की सरकार के कार्यकाल के दौरान 4 नए जिलों के गठन की बात उठी थी. इस संबंध में एक आदेश भी जारी हुआ था. उस समय यमुनोत्री, कोटद्वार, डीडीहाट और रानीखेत को नया जिला बनाने की योजना थी, लेकिन बाद में यह कोशिश ना तो कामयाब हो पाई और यह मुद्दा खटाई में पड़ गया.
विधानसभा अध्यक्ष चाहती हैं कोटद्वार बने जिला
हालांकि, कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ने ही नए जिलों के गठन की बात कही, लेकिन किसी ने भी इस दिशा में ठोस प्रयास नहीं किए.वहीं, विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी चाहती है कि कोटद्वार को जिला बनाया जाए. इसके लिए वह हर स्तर पर कोटद्वार को जिला बनाए जाने की वकालत करती नजर आ रही हैं. उनका कहना है कि हर संभव स्तर पर वो इस मुद्दे को उठा रही हैं. उन्होंने कहा कि अगर कोटद्वार जिला बनेगा तो वहां और बेहतर तरीके से विकास कार्य होगा.
कांग्रेस प्रदेश संगठन महामंत्री ने कहा
वहीं, कांग्रेस बीजेपी की मंशा पर सवाल उठा रही है, उनका कहना है कि बीजेपी नए जिलों के गठन की बात तो कहती है लेकिन काम नहीं करती. कांग्रेस की प्रदेश संगठन महामंत्री मथुरादत्त जोशी ने कहा बीजेपी की कथनी और करनी में अंतर है.
राज्य हित में होगा सरकार का निर्णय
वहीं, भाजपा का कहना है कि राज्य हित में जो भी होगा सरकार निर्णय लेगी, लेकिन नए जिलों के गठन के आर्थिक पहलू भी हैं. बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष देवेंद्र भसीन ने कहा, सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए राज्य के हित में सरकार फैसला लेगी.
सरकार पर पड़ेगा आर्थिक बोझ
दरअसल, इस बात में कोई दोराय नहीं कि छोटी प्रशासनिक इकाइयों के गठन से विकास कार्यों में तेजी और जनता की बेहतर सुविधाएं मिलेगी. हालांकि, इससे सरकार पर आर्थिक बोझ जरूर पड़ेगा. अब ये देखना है कि सरकार नए जिलों के गठन को लेकर आगे क्या कदम उठती है, या फिर यह मुद्दा महज मुद्दा ही बनकर रह जाता है.