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कॉर्बेट नेशनल पार्क को 85 साल हुए पूरे।
कॉर्बेट नेशनल पार्क 85 साल का हो गया है। कभी टिहरी राजा की रियासत का अभिन्न अंग रहा है यह हिस्सा पार्क अब कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के नाम से भी जाना जाता है। 300 वर्ग किलोमीटर से शुरू हुआ इसका सफर अब करीब 1290 किलोमीटर तक जा पहुंचा है। कॉर्बेट नेशनल पार्क में भी समय के साथ बदलाव हुए हैं। यह बदलाव वनों और वन्यजीव प्रेमियों के लिए सुकून देने वाले हैं। तो वही इस पार्क ने प्रयत्न के क्षेत्र में भी नए आयामो को छुआ है। 8 अगस्त 1936 में एशिया का यह पहला नेशनल पार्क अस्तित्व में आया था। तब से लेकर अब तक इस नेशनल पार्क ने किसी भी मामले में पीछे मुड़कर नही देखा।
कॉर्बेट पार्क के ढिकाला जोन में कभी पर्यटक बस से सफारी किया करते थे। यह गढ़वाल यूज़र्स की यह बस कभी उन्हें ढिकाला तक लाने ले जाने का काम किया करती थी। लोगो की यदि माने तो 2002 तक यहां यह बस चला करती थी। लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया गया। और कॉर्बेट ने यहां अपनी बस शुरू की। परन्तु समय के साथ कॉर्बेट प्रशासन ने भी करवट बदली। यहां प्राइवेट छोटी गाड़िया भी जाने लगी। यह दौर भी बहुत समय तक नही चल पाया। स्थानीय लोगो के रोजगार के लिए यहां जिप्सियां रजिस्टर्ड की गई। कॉर्बेट में धीरे धीरे जिप्सियों से सफारी शुरू हुई। अब यहां 357 जिप्सियां रजिस्टर्ड हैं। जो पर्यटको को पार्क में घुमाने का काम करती हैं। जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार बढ़ा है। साथ ही कॉर्बेट की स्वच्छता के साथ साथ पर्यटको की सुरक्षा का भी ध्यान रखा जा रहा है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में नेशनल पार्क, सेंक्चुरी और बफर जोन भी समिलित हैं। इस टाइगर रिजर्व को देश मे प्रोजेक्ट टाइगर लागू होते ही बाघो के संरक्षण के लिए भी चयनित किया गया। और प्रथम चरण में 1 अप्रैल 1973 को कॉर्बेट बाघो के संरक्षण में जुट गया। 2010 में इसे टाइगर रिजर्व के रूप में नोटिफिकेशन मिला। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व बाघो के घनत्व और एक टाइगर रिजर्व में सबसे अधिक बाघो के लिए मशहूर है। यहां प्रोटेक्शन के लिए भी परंपरागत पद्धति के साथ नई तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। जिससे कि यहां के वन और वन्यजीव सुरक्षित रह सकें।