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सालम जनक्रांति दिवस पर याद किये गए सालम के संग्रामी.
आजादी के आंदोलन में अल्मोड़ा जनपद के सालम क्षेत्र की जनक्रांति दिवस पर राजकीय इंटर कालेज ढेला में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सालम जनक्रांति के शहीदों व संग्रामियों को याद किया गया।कार्यक्रम की शुरुआत ज्योति फर्त्याल,प्राची बंगारी,खुशी बिष्ट,आकांक्षा सुंदरियाल व साथियों द्वारा उस आंदोलन के मुख्य संग्रामीं प्रताप सिंह बोरा द्वारा लिखे गए गीत उठो हिटो ददा भूलिओ,आज कसम हम खुंला,देशक लीजि आज हम जान आपणी दयूंल से हुई।
इंटरवल में हुये इस कार्यक्रम मेंअंग्रेजी प्रवक्ता नवेंदु मठपाल ने बताया कि 1942 में रामसिंह धोनी की मौत के पश्चात उनसे प्रेरित हो कौमी एकता दल के कई युवा कार्यकर्ताओं की सक्रियता के कारण अल्मोड़ा जनपद के सालम क्षेत्र के सुदूरवर्ती गांवों में भी राष्ट्रीय जागरण का कार्य सफलता पूर्वक चलता रहा।
सालम के प्रवेशद्वार शहरफाटक में 23 जून 1942 को मण्डल कांग्रेस के तत्वाधान में एक बड़ी सभा आयोजित की गयी।जिसमें कुमाऊं के प्रख्यात नेता हर गोविन्द पंत ने झण्डा फहराया। कुछ देर बाद पटवारी को जब खबर मिली तो उसने दल -बल सहित झण्डा उतरवा कर भीड़ को तितर बितर कर दिया। इस घटना के फलस्वरुप मण्डल कांग्रेस ने आगामी 1 अगस्त1942 को तिलक जयन्ती पर सालम के 11 जगहों पर झण्डा फहराया गया।
25 अगस्त की सुबह से ही पुनः आसपास के दर्जनों गांवों की जनता तिरंगे और ढोल बाजों के साथ देशप्रेम के नारे लगाते हुए धामदेव के तप्पड़ में एकत्रित होने लगी। कुछ ही देर बाद सूचना मिली कि गोरों की फौज पूरी शक्तिबल के साथ थुवासिमल पहुंच गयी है जिसे कुमाऊं कमिश्नर ओर से सालम की बगावत का सख्ती से दमन करने के आदेश मिले हैं। यह खबर मिलते ही जनता में उबाल आ गया और वे गोरों की फौज से डटकर मुकाबला क़रने की तैयारी में जुट गये। हजारों की संख्या में एकत्रित लागों का जोश बढ़ता ही जा रहा था। कुछ ही देर में जब गोरों की फौज पहाड़ पर पहुंचने लगी तो जनता को भयभीत करने के लिए उन्होंने हवाई फायर करनी शुरू कर दी। तब जनता ने अपना बचाव करते हए उन पर पत्थरों की बौछार करनी शुरू कर दी। इस समय धामदेव का मैदान पूरी तरह रणभूमि में बदल गया था। एक ओर गोरो की फौज तो दूसरी तरफ आजादी के रणबांकुरे। पत्थरों की मार और गोलियों की धांय-धांय से चारों ओर हाहाकार मचने लगा। दो उत्साही नौजवान चौकुना गांव का नर सिंह धानक तथा काण्डे गांव का टीका सिंह कन्याल पहाड़ी की ओट से फौज की पोजीसन देखकर पत्थरों की मार करने का निर्देश देने में लगे थे तभी एक गोली नर सिंह धानक के पेट में जा लगी और वह वहीं पर शहीद हो गये। संघर्ष जारी ही था कि थोड़ी ही देर में एक गोली टीका सिंह कन्याल को भी लगी और वह गंभीर रूप से घायल हो गये। अगले दिन अल्मोड़ा के अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गयी। शाम होने तक यह संघर्ष खत्म हो गया। बारदात के समय पकड़ गयेे कौमी सेवादल के कार्यकर्ताओं की रायफल के बटों से बुरी तरह पिटाई कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। सालम के इस गोलीकाण्ड में दो लोगों के शहीद होने के साथ ही 200 से ज्यादा लोगों को चोटें आयी थी।गिरफ्तार क्रांतिकारियों में प्रताप सिंह भी शामिल थे। जब पुलिस उन्हें ले जा रही थी तब वे तन्मयता से यह गीत गाते जा रहे थे-
हर जगह दल क्रांति के हों तब बेड़ा पार हो
दुश्मनों का नाश हो अपना वतन गुलजार हो।मध्यांतर में हुए इस कार्यक्रम में ढेला के बच्चों द्वारा उस दौर के क्रांतिकारियों के चित्र भी बनाये गए।सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता के माध्यम से उस दौर की घटनाओं को जाना गया।जिसमें अभिषेक अधिकारी, भावना नेगी,वैशाली नेगी,तान्या,अधिकारी,सानिया अधिकारी,वंश अधिकारी, नवीन सत्यवली,मानशी करगेती,पूनम सत्यपाल ने भाग लिया।